Chapter 2 — Sankhya Yoga • Verse 2.5
गुरूनहत्वा हि महानुभावान्
श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके ।
हतार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुञ्जीय भोगान् रक्तरुधिरप्रदिग्धान् ॥
Better to live by alms than to slay great elders; their death would stain our joys with blood.
महान गुरुजनों को मारे बिना भिक्षा अच्छी; उनका वध भोगों को रक्त से रंजित कर देगा।
Life Lesson:
If the win soils the soul, question the win.
जीत आत्मा को मैला करे—जीत पर प्रश्न करो।