Chapter 11 — Vishvarupa Darshana Yoga • Verse 11.31
आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो
नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद ।
विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम् ॥
Tell me who You are in this terrible form. Salutations! Be gracious, O best of gods. I wish to know You, the primal Being, for I do not understand Your action.
इस उग्र रूप में आप कौन हैं—यह कहिए। नमोऽस्तु! कृपा करें, हे देववर। मैं आपको आदि‑पुरुष रूप में जानना चाहता हूँ, क्योंकि आपकी प्रवृत्ति मैं नहीं जानता।
Life Lesson:
Inquiry survives even in awe.
विस्मय के बीच भी प्रश्न जीवित रहता है।