किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा ।
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् ॥
How much more the righteous Brahmanas and devoted royal sages! Having come to this impermanent, joyless world—worship Me.
तो फिर पवित्र ब्राह्मण और भक्त राजर्षि तो और भी! इस अनित्य, अल्प‑आनन्द जगत में आकर मेरी भक्ति करो।
Life Lesson:
Impermanence invites ultimate devotion.
अनित्य जगत—परम भक्ति का आह्वान।