पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति ।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः ॥
Whoever offers Me with devotion a leaf, a flower, a fruit or water—I accept that, offered with devotion by the self‑controlled.
जो मुझे भक्ति से पत्र, पुष्प, फल या जल अर्पित करता है—संयमी भक्त द्वारा भक्ति से अर्पित वह अर्पण मैं स्वीकार करता हूँ।
Life Lesson:
It’s not the thing; it’s the love in it.
वस्तु नहीं—उसमें भरी भक्ति मायने रखती है।